ग्रामीण बैंकों में विभागीय जाँच की स्थिति बडी ही शोचनीय है। न तो जाँच अधिकारी को और न ही प्रस्तुतकर्ता अधिकारी को विभागीय जांच प्रक्रिया के बारे में सही जानकारी होती है, ऐसे में आरोपित अधिकारी को विभागीय जांच प्रक्रिया की कितनी जानकारी होगी, इस बारे में सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है ! विभागीय जांच प्रक्रिया के बारे में अपने स्टाफ को यहां तक कि जांच अधिकारी व प्रस्तुतकर्ता अधिकारी को भी उचित जानकारी देने में सामान्यता बैंक प्रबंधन की कोई रुचि नहीं रह गयी है। बैंक प्रबंधन की इस उदासीनता के दो दुष्परिणाम सामने आते हैं।
1. ऐसे केस जहाँ बैंक अधिकारियों/ कर्मचारियों द्वारा वास्तव में जान बूझ कर गलत काम किये गए है। विभागीय जांच प्रक्रिया के दोषपूर्ण संचालन के कारण बैंक द्वारा बर्खास्त / दंडित किये जाने पर, न्यायालयों ने बैंक द्वारा दिये गए दंड को खारिज कर दिया। गलत कार्य करने वाले बैंक अधिकारी / कर्मचारी केवल इस कारण न्यायालय से अपने अनुकूल आदेश पाने में सफल हो सके क्योंकि विभागीय जाँच की प्रक्रिया दोषपूर्ण थी।
2. दूसरी ओर बहुत से ऐसे अधिकारी / कर्मचारी भी हैं जिन्होंने जान बूझ कर कोई गलत काम नहीं किया, लेकिन बैंक प्रबंधन ने दुर्भावना से ग्रसित हो कर उन्हें आरोप पत्र दिया, साथ ही जांच अधिकारी करने पर दबाव बनाते हुए जांच रिपोर्ट में गलत ढंग से आरोपों को सिद्ध होना लिखवा लिया, और आरोपित अधिकारी/ कर्मचारी को दंडित कर अपने अहम को संतुष्ट किया।
विभागीय जाँच प्रक्रिया के संबंध में नाबार्ड ने बहुत समय पूर्व 1987 में ही गाइडलाइंस जारी कर दी थी। इन गाइडलाइंस में किसी भी प्रकार के परिवर्तन व संशोधन नही किये गए है। ग्रामीण बैंकों के सभी स्टाफ को इन गाइडलाइंस का अध्ययन करना चाहिए। इन गाइडलाइंस को ग्रामीण बैंक कर्मियो के लिए सहज सुलभ बनाने केलिए अभी कोई प्रयास नहीं किये है। जस्टिस फ़ॉर बैंकर्स फाउंडेशन ने इन गाइडलाइंस को सभी ग्रामीण बैंक कर्मियों के अध्ययन के लिए उपलब्ध करा दिया है। My Correspondence Mobile App के द्वारा यह नाबार्ड की यह गाइडलाइंस उपलब्ध हैं। यह मोबाइल एप प्लेस्टोर पर उपलब्ध है, जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है -
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.jccode.mycorrespondence
यह ऍप डाऊनलोड करने के बाद, अपनी प्रोफाइल में आवश्यक जानकारी भर दे, फिर ऍप के "चैट टू एडमिन" मीनू में जा कर गाइडलाइंस के लिए रेक्विस्ट भेज दें। रिक्वेस्ट एक्सेप्ट होने के बाद आपको ऍप के माध्यम से गाइडलाइंस प्राप्त हो जाएंगी।
डैनियल सिंह
मुख्य ट्रस्टी
जस्टिस फ़ॉर बैंकर्स फाउंडेशन
1. ऐसे केस जहाँ बैंक अधिकारियों/ कर्मचारियों द्वारा वास्तव में जान बूझ कर गलत काम किये गए है। विभागीय जांच प्रक्रिया के दोषपूर्ण संचालन के कारण बैंक द्वारा बर्खास्त / दंडित किये जाने पर, न्यायालयों ने बैंक द्वारा दिये गए दंड को खारिज कर दिया। गलत कार्य करने वाले बैंक अधिकारी / कर्मचारी केवल इस कारण न्यायालय से अपने अनुकूल आदेश पाने में सफल हो सके क्योंकि विभागीय जाँच की प्रक्रिया दोषपूर्ण थी।
2. दूसरी ओर बहुत से ऐसे अधिकारी / कर्मचारी भी हैं जिन्होंने जान बूझ कर कोई गलत काम नहीं किया, लेकिन बैंक प्रबंधन ने दुर्भावना से ग्रसित हो कर उन्हें आरोप पत्र दिया, साथ ही जांच अधिकारी करने पर दबाव बनाते हुए जांच रिपोर्ट में गलत ढंग से आरोपों को सिद्ध होना लिखवा लिया, और आरोपित अधिकारी/ कर्मचारी को दंडित कर अपने अहम को संतुष्ट किया।
विभागीय जाँच प्रक्रिया के संबंध में नाबार्ड ने बहुत समय पूर्व 1987 में ही गाइडलाइंस जारी कर दी थी। इन गाइडलाइंस में किसी भी प्रकार के परिवर्तन व संशोधन नही किये गए है। ग्रामीण बैंकों के सभी स्टाफ को इन गाइडलाइंस का अध्ययन करना चाहिए। इन गाइडलाइंस को ग्रामीण बैंक कर्मियो के लिए सहज सुलभ बनाने केलिए अभी कोई प्रयास नहीं किये है। जस्टिस फ़ॉर बैंकर्स फाउंडेशन ने इन गाइडलाइंस को सभी ग्रामीण बैंक कर्मियों के अध्ययन के लिए उपलब्ध करा दिया है। My Correspondence Mobile App के द्वारा यह नाबार्ड की यह गाइडलाइंस उपलब्ध हैं। यह मोबाइल एप प्लेस्टोर पर उपलब्ध है, जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है -
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यह ऍप डाऊनलोड करने के बाद, अपनी प्रोफाइल में आवश्यक जानकारी भर दे, फिर ऍप के "चैट टू एडमिन" मीनू में जा कर गाइडलाइंस के लिए रेक्विस्ट भेज दें। रिक्वेस्ट एक्सेप्ट होने के बाद आपको ऍप के माध्यम से गाइडलाइंस प्राप्त हो जाएंगी।
डैनियल सिंह
मुख्य ट्रस्टी
जस्टिस फ़ॉर बैंकर्स फाउंडेशन