कहने को तो PSB में दस लाख से अधिक कर्मचारी व अधिकारी हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद भी बैंकर्स की वास्तविक समस्याओं को सुनने के लिए भी कोई तैयार नहीं है। न ही बैंक प्रबंधन और न ही सरकार। बैंक कर्मियों की स्थिति बंधुआ मज़दूरों जैसी होती जा रही है। कहने को तो बैंकों में यूनियनें हैं लेकिन यूनियन के नेताओं व बैंक प्रबंधन के बीच की सांठ गांठ के चलते बैंक के आम कर्मचारियों व अधिकारियों की स्थिति चक्की के दो के पाटों के बीच फंस जाने जैसी हो गयी है। इस स्थिति से उबरने के लिए सभी बैंकों कर्मियों को एक जुट हो कर साहस के साथ आगे आना पड़ेगा।
कहने को तो PSB में दस लाख से अधिक कर्मचारी व अधिकारी हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद भी बैंकर्स की वास्तविक समस्याओं को सुनने के लिए भी कोई तैयार नहीं है। न ही बैंक प्रबंधन और न ही सरकार। बैंक कर्मियों की स्थिति बंधुआ मज़दूरों जैसी होती जा रही है। कहने को तो बैंकों में यूनियनें हैं लेकिन यूनियन के नेताओं व बैंक प्रबंधन के बीच की सांठ गांठ के चलते बैंक के आम कर्मचारियों व अधिकारियों की स्थिति चक्की के दो के पाटों के बीच फंस जाने जैसी हो गयी है। इस स्थिति से उबरने के लिए सभी बैंकों कर्मियों को एक जुट हो कर साहस के साथ आगे आना पड़ेगा।